आचार्य श्रीराम शर्मा >> युवा क्रान्ति पथ युवा क्रान्ति पथडॉ. प्रणय पण्डया
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प्रस्तुत है युवा क्रान्ति पथ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अन्तस् के अक्षर
‘युवा क्रान्ति पथ’ पर चलकर राष्ट्रीय जीवन में महापरिवर्तन
ला सकते हैं। पर इसकी शुरुआत उन्हें अपने से करनी होगी। अपने अन्तस् में
कहीं छुपी-दबी क्रान्ति की चिगांरियों को फिर से दहकाना होगा। व्यवस्थाएँ
बदल सकती हैं, विवशताएँ मिट सकती हैं, पर तब जब युवा चेतना में दबी पड़ी
क्रान्ति की चिन्गारियाँ महाज्वालाएँ बनें। इनकी विस्फोटक गूंज पूरे
राष्ट्र में ध्वनित हो। इनके प्रकाश व ताप को देखकर विश्व कह उठे-युवा
भारत जाग उठा है। दुनिया की कोई शक्ति और उसके द्वारा खड़े किए जाने वाले
अवरोध अब इसकी राह नहीं रोक सकते।
इस पुस्तक की प्रत्येक पंक्ति लिखने वाले की अनुभूति में डूबी है। लिखते समय कई अतीत बन चुकी किशोर वय और अभी कुछ ही दूर पीछे छूटी युवावस्था बार-बार चमकी है। युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव की कृपा किरणें बार-बार अन्त:करण में क्रान्तिबीज बनकर फूटी हैं। जलते तड़पते हुए हृदय की भावनाओं की स्याही से इसे लिखा गया है। सवाल यह है कि क्या देश के युवा भी इसे भावनाओं में भीग कर पढ़ेंगे ? क्या उनकी तरुणाई कुछ विशेष करने को अकुलाएगी ? इन प्रश्नों के जवाब में कहीं अन्तरिक्ष में ‘हां’ की गूंज सुनायी देती है। अपना अन्तःकरण जितना अनुभव कर पाता है-उससे यही लगता है कि सर्वनियन्ता युग देवता, महाकाल युवाओं को क्रान्तिपथ पर चलाना चाहते हैं।
लेखक अपने विद्यार्थी जीवन से परम पूज्य गुरुदेव के प्रत्यक्ष सान्निध्य में रहा है। उसने दशकों की अवधि उनके साथ-साथ गुजारी है। इस लम्बी अवधि में उसने गुरुदेव के हृदय में उफनते महाक्रान्ति के ज्वार को देखा है। उसने अनुभव किया है-उनके हृदय कुण्ड में धधकती क्रान्तिवह्नि को, जिसमें स्वयं की आहुति दे डालने के लिए उसका मन बार-बार मचला है। सामर्थ्य भर ऐसा किया भी गया है। बारी अब आज के युवाओं की है, जिनसे धरती माता-भारत माता और महा अन्तरिक्ष में व्याप्त भगवान महाकाल उम्मीदें लगाए बैठे हैं। युवा चेतना चेते और अपनी माँ की कोख और उसके दूध की लाज रखे।
स्वार्थ की चिन्ता-से अहं की प्रतिष्ठा से देश और धरती की माँग हमेशा बड़ी होती है। लेखक ने अपने जीवन में यही जाना और सीखा है। युवा चिन्ता न करें। प्रबल वायु बड़े वृक्षों से ही टकराती है। अग्नि को कुरेदने पर वह और भी प्रज्वलित होती है। युवा शक्ति से टकराने वाले अवरोध उसके संकल्प और क्षमता को बढ़ाने का ही साधन बनते हैं। अपना अनुभव पहले भी यही था और आज भी यही है। जब हृदय में पीड़ा होती है, जब मालूम होता है कि प्रकाश कभी न होगा, जब आशा और साहस का प्रायः लोप होता है, तब इस भयंकर आंतरिक-आध्यात्मिक तूफान के बीच गुरुदेव की कृपा की अन्तज्योति चमकती है। हे भारत माता की सन्तानों। यह अन्तर्ज्योति आपके अन्तम् में भी है। इसे निहारें और क्रान्ति पथ पर चल पड़ें। इस पुस्तक के लेखक को अपना साथी सहचर मानें। हम सब साथ-साथ युवा क्रान्ति पथ पर चलें। इसी शुभ भावना के साथ युवा क्रान्ति पथ की प्रत्येक पंक्ति आप सभी को, देश के प्रत्येक नवयुवक-नवयुवती को अर्पित है। आपकी क्रान्ति की चिन्गारियाँ कल की महाक्रान्ति की ज्वालाएँ बनेंगी, इसकी प्रतीक्षा है।
इस पुस्तक की प्रत्येक पंक्ति लिखने वाले की अनुभूति में डूबी है। लिखते समय कई अतीत बन चुकी किशोर वय और अभी कुछ ही दूर पीछे छूटी युवावस्था बार-बार चमकी है। युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव की कृपा किरणें बार-बार अन्त:करण में क्रान्तिबीज बनकर फूटी हैं। जलते तड़पते हुए हृदय की भावनाओं की स्याही से इसे लिखा गया है। सवाल यह है कि क्या देश के युवा भी इसे भावनाओं में भीग कर पढ़ेंगे ? क्या उनकी तरुणाई कुछ विशेष करने को अकुलाएगी ? इन प्रश्नों के जवाब में कहीं अन्तरिक्ष में ‘हां’ की गूंज सुनायी देती है। अपना अन्तःकरण जितना अनुभव कर पाता है-उससे यही लगता है कि सर्वनियन्ता युग देवता, महाकाल युवाओं को क्रान्तिपथ पर चलाना चाहते हैं।
लेखक अपने विद्यार्थी जीवन से परम पूज्य गुरुदेव के प्रत्यक्ष सान्निध्य में रहा है। उसने दशकों की अवधि उनके साथ-साथ गुजारी है। इस लम्बी अवधि में उसने गुरुदेव के हृदय में उफनते महाक्रान्ति के ज्वार को देखा है। उसने अनुभव किया है-उनके हृदय कुण्ड में धधकती क्रान्तिवह्नि को, जिसमें स्वयं की आहुति दे डालने के लिए उसका मन बार-बार मचला है। सामर्थ्य भर ऐसा किया भी गया है। बारी अब आज के युवाओं की है, जिनसे धरती माता-भारत माता और महा अन्तरिक्ष में व्याप्त भगवान महाकाल उम्मीदें लगाए बैठे हैं। युवा चेतना चेते और अपनी माँ की कोख और उसके दूध की लाज रखे।
स्वार्थ की चिन्ता-से अहं की प्रतिष्ठा से देश और धरती की माँग हमेशा बड़ी होती है। लेखक ने अपने जीवन में यही जाना और सीखा है। युवा चिन्ता न करें। प्रबल वायु बड़े वृक्षों से ही टकराती है। अग्नि को कुरेदने पर वह और भी प्रज्वलित होती है। युवा शक्ति से टकराने वाले अवरोध उसके संकल्प और क्षमता को बढ़ाने का ही साधन बनते हैं। अपना अनुभव पहले भी यही था और आज भी यही है। जब हृदय में पीड़ा होती है, जब मालूम होता है कि प्रकाश कभी न होगा, जब आशा और साहस का प्रायः लोप होता है, तब इस भयंकर आंतरिक-आध्यात्मिक तूफान के बीच गुरुदेव की कृपा की अन्तज्योति चमकती है। हे भारत माता की सन्तानों। यह अन्तर्ज्योति आपके अन्तम् में भी है। इसे निहारें और क्रान्ति पथ पर चल पड़ें। इस पुस्तक के लेखक को अपना साथी सहचर मानें। हम सब साथ-साथ युवा क्रान्ति पथ पर चलें। इसी शुभ भावना के साथ युवा क्रान्ति पथ की प्रत्येक पंक्ति आप सभी को, देश के प्रत्येक नवयुवक-नवयुवती को अर्पित है। आपकी क्रान्ति की चिन्गारियाँ कल की महाक्रान्ति की ज्वालाएँ बनेंगी, इसकी प्रतीक्षा है।
डॉ. प्रणव पण्डया
युवा शक्ति
संवेदना और साहस की सघनता में युवा शक्ति प्रज्वलित होती है। जहाँ भाव
छलकते हों और साहस मचलता हो, समझो वही यौवन के अंगारे शक्ति की धधकती
ज्वालाओं में बदलने के लिए तत्पर हैं। विपरीताएँ इसे प्रेरित करती हैं,
विषमताओं से इसे उत्साह मिलता है। समस्याओं के संवेदन इसमें नयी ऊर्जा का
संचार करते हैं। काल की कुटिल व्यूह रचनाओं की छुअन से यह और अधिक उफनती
है और तब तक नहीं थमती, जब तक कि यह इन्हें पूरी तरह से छिन्न-भिनन न कर
दे।
हारे मन और थके तन से कोई कभी युवा नहीं होता, फिर भले ही उसकी आयु कुछ भी क्यों न हो ? यौवन तो वही है, जहां शक्ति का तूफान अपनी सम्पूर्ण प्रचण्डता से सक्रिय है। जो अपने महावेग से समस्याओं के गिरि-शिखरों को ढहाता, विषमताओं के महावटों को उखाड़ता और विपरीतताओं के खाई खड्ढों को पाटता चलता है। ऐसा क्या है ? जो युवा न कर सके ? ऐसी कौन सी मुश्किल है, जो उसकी शक्ति को थाम ले ? अरे वह युवा शक्ति ही क्या, जिसे कोई अवरोध रोक ले।
समस्याओं की परिधि व्यक्तिगत हो या पारिवारिक, सामाजिक-राष्ट्रीय हो अथवा वैश्विक, युवा शक्ति इनका समाधान करने में कभी नहीं हारी है। रानी लक्ष्मीबाई, वीर सुभाष, स्वामी विवेकानन्द, शहीद भगतसिंह के रूप में इसके अनगिन आयाम प्रकट हुए हैं। यह प्रक्रिया आज भी जारी है। देह का महाबल, प्रतिभा की पराकाष्ठा, आत्मा का परम तेज और सबसे बढ़कर महान उद्देश्यों के लिए इन सभी को न्यौछावर करने के बलिदानी साहस से युवा शक्ति ने सदा असम्भव को सम्भव किया है। इनकी एक हुकांर से साम्राज्य सिमटे हैं, राजसिंहासन भूलुंठित हुए हैं और नयी व्यवस्थाओं का नवोदय हुआ है।
सचमुच ही यौवन भगवती महाशक्ति का वरदान है। यहां वह अपनी सम्पूर्ण महिमा के साथ प्रदीप्त होती है। दुष्ट दलन, सद्गुण पोषण एवं कलाओं के सौन्दर्य सृजन के सभी रुप यहीं प्रकट होते हैं। ध्यान देने की बात यह है कि यौवन में शक्ति के महानुदान मिलते तो सभी को हैं, पर टिकते वहीं हैं, जहां इनका सदुपयोग होता है। जरा सा दुरुपयोग होते ही शक्ति यौवन की संहारक बन जाती है। कालिख की अंधेरी कालिमा में इसकी प्रभा विलीन होने लगती है। इसलिए युवा जीवन की शक्ति सम्पन्नता सार्थक यौवन में ही संवर्धित हो पाती है।
हारे मन और थके तन से कोई कभी युवा नहीं होता, फिर भले ही उसकी आयु कुछ भी क्यों न हो ? यौवन तो वही है, जहां शक्ति का तूफान अपनी सम्पूर्ण प्रचण्डता से सक्रिय है। जो अपने महावेग से समस्याओं के गिरि-शिखरों को ढहाता, विषमताओं के महावटों को उखाड़ता और विपरीतताओं के खाई खड्ढों को पाटता चलता है। ऐसा क्या है ? जो युवा न कर सके ? ऐसी कौन सी मुश्किल है, जो उसकी शक्ति को थाम ले ? अरे वह युवा शक्ति ही क्या, जिसे कोई अवरोध रोक ले।
समस्याओं की परिधि व्यक्तिगत हो या पारिवारिक, सामाजिक-राष्ट्रीय हो अथवा वैश्विक, युवा शक्ति इनका समाधान करने में कभी नहीं हारी है। रानी लक्ष्मीबाई, वीर सुभाष, स्वामी विवेकानन्द, शहीद भगतसिंह के रूप में इसके अनगिन आयाम प्रकट हुए हैं। यह प्रक्रिया आज भी जारी है। देह का महाबल, प्रतिभा की पराकाष्ठा, आत्मा का परम तेज और सबसे बढ़कर महान उद्देश्यों के लिए इन सभी को न्यौछावर करने के बलिदानी साहस से युवा शक्ति ने सदा असम्भव को सम्भव किया है। इनकी एक हुकांर से साम्राज्य सिमटे हैं, राजसिंहासन भूलुंठित हुए हैं और नयी व्यवस्थाओं का नवोदय हुआ है।
सचमुच ही यौवन भगवती महाशक्ति का वरदान है। यहां वह अपनी सम्पूर्ण महिमा के साथ प्रदीप्त होती है। दुष्ट दलन, सद्गुण पोषण एवं कलाओं के सौन्दर्य सृजन के सभी रुप यहीं प्रकट होते हैं। ध्यान देने की बात यह है कि यौवन में शक्ति के महानुदान मिलते तो सभी को हैं, पर टिकते वहीं हैं, जहां इनका सदुपयोग होता है। जरा सा दुरुपयोग होते ही शक्ति यौवन की संहारक बन जाती है। कालिख की अंधेरी कालिमा में इसकी प्रभा विलीन होने लगती है। इसलिए युवा जीवन की शक्ति सम्पन्नता सार्थक यौवन में ही संवर्धित हो पाती है।
सार्थक यौवन के लिए चाहिए आध्यात्मिक दृष्टि
युवा जीवन सभी को मिलता है, पर सार्थक यौवन विरले पाते हैं। शरीर की
बारीकियों के जानकार चिकित्सा विशेषज्ञ युवा जीवन को कतिपय जैव रासायनिक
परिवर्तनों का खेल मानते हैं। ये परिवर्तन प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में
घटित होते हैं। उम्र एक खास पड़ाव को छूते ही इन परिवर्तनों का सिलसिला
शुरु हो जाता है और कई सालों तक लगातार जारी रहता है। विशेषज्ञों ने कई
ग्रंथों में इन सूक्ष्म रासायनिक परिवर्तनों की कथा लिखी है। उनके अनुसार
15 वर्ष की आयु से 35 वर्ष की आयु युवा जीवन की है। पैंतीस साल की आयु
पूरी होते ही यौवन ढलने लगता है और फिर प्रौढ़ता परिपक्वता की श्वेत छाया
जीवन को छूने लगती है। लगभग बीस वर्षों का यह आयु काल यौवन का है।
इसे कैसे बिताएँ, यह स्वयं पर निर्भर है।
युवा जीवन प्रारम्भ होते ही शारीरिक परिवर्तनों की ही भाँति कई तरह के मानसिक परिवर्तन भी होते हैं। जिनके आरोह-अवरोह का लेखा-जोखा मनोवैज्ञानिकों ने किया है। उनके अनुसार यह भावनात्मक एवं वैचारिक संक्रान्ति का काल है। इस अवधि में कई तरह के भाव एवं विचार उफनते हैं। अनेकों उद्वेग एवं आवेग उमड़ते हैं। कई तरह के अन्तर्विरोधों एवं विद्रोहों का तूफानी सिलसिला अंतस् में चलता रहता है। शक्ति के प्रचण्ड ज्वार उभरते एवं विलीन होते हैं। यह सब कुछ इतनी तीव्र गति से होता है कि स्थिरता खोती नजर आती है। अपनी अनेकों मत भिन्नओं के बावजूद सभी मनोविशेषज्ञ युवा जीवन की संक्रान्ति संवेदनाओं के बारे में एक मत हैं। सबका यही मानना है कि युवा जीवन की विशेषताओं को शक्तियों को, आवेगों को यदि सँवारा न गया, तो जीवन की लय कुण्ठित हो सकती है। यौवन की सरगम बेसुरे चीत्कार में बदल सकती है।
इसे कैसे बिताएँ, यह स्वयं पर निर्भर है।
युवा जीवन प्रारम्भ होते ही शारीरिक परिवर्तनों की ही भाँति कई तरह के मानसिक परिवर्तन भी होते हैं। जिनके आरोह-अवरोह का लेखा-जोखा मनोवैज्ञानिकों ने किया है। उनके अनुसार यह भावनात्मक एवं वैचारिक संक्रान्ति का काल है। इस अवधि में कई तरह के भाव एवं विचार उफनते हैं। अनेकों उद्वेग एवं आवेग उमड़ते हैं। कई तरह के अन्तर्विरोधों एवं विद्रोहों का तूफानी सिलसिला अंतस् में चलता रहता है। शक्ति के प्रचण्ड ज्वार उभरते एवं विलीन होते हैं। यह सब कुछ इतनी तीव्र गति से होता है कि स्थिरता खोती नजर आती है। अपनी अनेकों मत भिन्नओं के बावजूद सभी मनोविशेषज्ञ युवा जीवन की संक्रान्ति संवेदनाओं के बारे में एक मत हैं। सबका यही मानना है कि युवा जीवन की विशेषताओं को शक्तियों को, आवेगों को यदि सँवारा न गया, तो जीवन की लय कुण्ठित हो सकती है। यौवन की सरगम बेसुरे चीत्कार में बदल सकती है।
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